Ajaya: Duryodhan Ki Mahabharat, Paanson Ka Khel, Kaurav Vansh Ki Mahagatha - 1 (Hindi )

Ajaya: Duryodhan Ki Mahabharat, Paanson Ka Khel, Kaurav Vansh Ki Mahagatha - 1 (Hindi )

Author : Anand Neelkanthan (Author) Rachana Bhola 'Yamini' (Translator)

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Rs. 350.00
Classification Fiction / Epic
Pub Date 2015
Imprint Manjul Publishing House
Page Extent 418
Binding Paperback
Language Hindi
ISBN 9788183225328
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About the Book

महाभारत को एक महान महाकाव्य के रूप में चित्रित किया जाता रहा है। परंतु जहॉं एक ओर जय पांडवों की कथा है, जो कुरुक्षेत्र के विजेताओं के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत की गई है; वहीं अजेय उन 'अविजित' कौरवों की गाया है. जिनका लगभग समूल नाश कर दिया गया।
'भारत के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्य में एक क्रांति पनप रही है। भीष्म, हस्तिनापुर के पूजनीय कुलपिता, अपने साम्राज्य की एकता को बनाए रखने के लिए संघर्षरत हैं।
राजसिंहासन पर, नेत्रहीन सम्राट धृतराष्ट्र व उनकी विदेशी—मूल की पत्नी, गांधारी आसीन हैं। इस सिंहासन के निकट ही विधवा राजमाता कुंती खड़ी है जो अपने हृदय में
अपने पहले पुत्र को सिंहासन पर बैठा देखने की धधकती महत्त्वाकांक्षा रखती हैं, और चाहती हैं कि उसे इस दावे के लिए सार्वजनिक रूप से मान्यता दी जाए।
और इन सब के आसपास ही कहीं :
• परशुराम, शक्तिशाली दक्षिणी मंडल के रहस्यमयी गुरु, निरंतर इन्हीं प्रयासों में हैं कि किसी तरह पर्वतों से ले कर सागर तक अपना वर्चस्व कायम कर सकें।
• एकलव्य, एक युवा निषाद, जाति के बंधनों से बाहर आने के लिए छटपटा रहा है ताकि एक योद्धा बन सके।
• कर्ण, एक विनीत सारथी का पुत्र, सर्वाधिक विख्यात गुरु से शिक्षा प्राप्त करने के लिए दक्षिण की यात्रा करता है और इस धरा का सबसे महान धनुर्धर बनना
चाहता है।
• बलराम, यादवों के करिश्माई नेता, सागर के किनारे एक आदर्श नगरी के निर्माण की इच्छा रखते हैं और चाहते हैं कि उनकी प्रजा एक बार फिर समृद्ध हो कर
अपने खोए हुए गौरव को अर्जित करे।
• तक्षक, नागों के गुरिल्ला नेता, ने कमज़ोरों तथा शोषितों के साथ मिलकर एक क्रांति का सूत्रपात किया और भारत के घने वन प्रांतरों में छिपकर सुअवसर की
प्रतीक्षा में है, जहाँ जीवित रहना ही एकमात्र धर्म है।
• भिक्षुक जरा व उसका नेत्रहीन श्वान धर्म, भारत के धूल भरे मार्गों पर विचरते हुए उन सभी घटनाओं व व्यक्तियों के साक्षी बनते हैं, जो उनसे कहीं बड़े हैं, और कौरव
तथा पांडव अपनी अपनी नियतियों से साक्षात्कार कर रहे हैं।
इस संपूर्ण अव्यवस्था के बीच, हस्तिनापुर का युवराज सुबोधन तन कर खड़ा है और अपना जन्मसिद्ध अधिकार पाने के लिए कृतसंकल्प है। वह अपनी अंतरात्मा की
आवाज़ सुनकर ही निर्णय लेगा। वह अपनी नियति का निर्माता स्वयं है या यूं कहें कि वह ऐसा मानता है। वहीं हस्तिनापुर महल के प्रांगणों में, एक विदेशी राजकुमार भारत को
नष्ट करने के लिए षड्यंत्र रच रहा है। और पांसा फेंका जाता है...

About the Author(s)

मेरा जन्म, केरल में कोचीन की बाहरी सीमाओं पर स्थित, एक छोटे से विलक्षण गाँव त्रिपुनीतुरा में हुआ। वेंबानाड झील के पार, एरनाकुलम के पूर्व में स्थित इस गाँव को, कोचीन के शाही परिवार का स्थान होने का गौरव प्राप्त हुआ था। यद्यपि, यह अपने सैंकड़ों विचित्र देवालयों; अपने द्वारा निर्मित शास्त्रीय कलाकारों तथा संगीत की शाखा
के लिए अधिक प्रसिद्ध था। मुझे आज भी स्मरण है, मेरी कितनी ही शामें, देवालयों से आते चेंडों की मद्धिम धुन तथा संगीत विद्यालय की खुरदरी दीवारों को भेद कर आती
बाँसुरी के सुरों को सुनने में बीततीं। यद्यपि खाड़ी से आए धन तथा तेज़ी से विस्तार कर रहे कोचीन नगर ने उस पुराने संसार के आकर्षण के बचे-खुचे अवशेषों को भी धो-पोंछ कर बहा दिया है। पूरा गाँव एक सामान्य व साधारण उपनगरीय नर्क में बदल गया है, जिसके प्रतिरूप पूरे भारत में देखे जा सकते हैं।

मैं आवश्यकता से अधिक मंदिरों वाले गाँव में पला-बढ़ा, इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि पौराणिक गाथाओं ने मुझे सर्वाधिक आकर्षित किया। एक यह विडंबना रही कि में
खलनायकों के प्रति अधिक आकर्षित रहा। मेरा अपना जीवन चलता रहा... मैं एक इंजीनियर बना; इंडियन ऑयल कार्पोरेशन का हिस्सा बना, बंगलौर आ गया, अर्पणा से
विवाह किया और अपनी पुत्री अनन्या तथा पुत्र अभिनव का जीवन में स्वागत किया।
यद्यपि प्राचीन काल के उन स्वरों ने मेरे मस्तिष्क में शांत होने से इंकार कर दिया। मुझे अनुभव हुआ कि मैं पराजित व अभिशापितों की कथाएँ सुनाने के लिए प्रेरित हो रहा था; मुझे ऐसा लगा मानो मुझे उन सभी मूक नायकों को अपना स्वर देना था, जो हमारे महाकाव्यों के पारंपरिक लेखन की अविवेकपूर्ण स्वीकृति के कारण उपेक्षित रहे हैं।

यह आनंद की दूसरी पुस्तक है और इससे पूर्व, असुर - पराजितों की गाथा अपनी उल्लेखनीय सफलता के साथ नेशनल बेस्टसेलर सूची में पहले स्थान पर रही है। इसके साथ ही अजेय का दूसरा भाग भी शीघ्र ही पाठकों के हाथ में होगा।

आनंद नीलकंठन से संपर्क के लिए mail@asura.co.in

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