About the Book
काश! कुछ ऐसा होता कि कोई अपना हमारे पास होता।
काश! वो कुछ बदला होता तो बात अलग होती।
काश! उसने मुझे समझा होता।
ज़िंदगी इसी ‘काश’ के चारों तरफ घूमती है। इस ‘काश’ में बहुत से सपने, बहुत सी उम्मीदें, बहुत सारी संभावनाएं और बहुत सारा दर्द जुड़ा रहता है। इन्हीं से जुड़ी कहानी है ‘अंगूठी का भूत’। पहली नज़र में आपको ये साधारण-सी हॉरर स्टोरी का नाम लग सकता है पर जैसे-जैसे कहानी में आगे बढ़ेंगे तो ये भूत आपको कुछ अलग लगेगा, अंगूठी भी आपको कुछ अलग लगेगी और कहानी बहुत ही अलग लगेगी।
जय, नेहा और अनिल आपको अपनी ज़िंदगी से जुड़े लगेंगे। आप इन किरदारों को अपने आस-पास महसूस भी कर पाएंगे। आम किरदारों के साथ जो घटनाएं घटीं वो ही इसे खास बनाती हैं। कहानी कई पड़ावो से होते हुए सीधे अपने संदेश की तरफ बढ़ती है, भटकती नहीं है।
ये कहानी ‘काश’ से उपजी ज़रूर है पर रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए अहम मंत्र साथ लिए चलती है। कहानी का बड़ा हिस्सा रूमानियत से भरा है, पर संदेश रिश्तों में आड़े आती सोच पर सीधा प्रहार करता है। जब ये सोच बदलेगी तो काश! की ज़रूरत कम पड़ेगी तथा ज़िंदगी और समाज बेहतर होंगे।