About the Book
पिछले संस्करण में आपने देखा कि किस प्रकार मगध राजनीतिक अस्थिरता का केंद्र बनकर रह गया था। चारों ओर षड्यंत्रों और असंतोष का तांडव मचा था। अशोक द्वारा रचे गये एक षड्यंत्र के कारण, अवंती-जनपद द्वारा रचा जा रहा षड्यंत्र भी उजागर हो गया। इस घटना ने अशोक को घटनाओं के केंद्र में लाकर ख़डा कर दिया। अब अशोक के कंधों पर यह दायित्व डाला गया कि वह अवंती-जनपद द्वारा उत्पन्न किये गये विद्रोह को शांत कर, मगध में पुनः शान्ति की स्थापना करे और अपने पराक्रम को सिद्ध करे। परन्तु क्या वह इस कार्य में सफल हो पायेगा?
अवंती-राज के पास एक लाख सैनिक हैं और विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र हैं। उनके पास सेनापति सुगत्र, पुत्री स्वाति और अगस्त्य जैसे निपुण योद्धा हैं। दूसरी ओर, अशोक के पास केवल तीस हज़ार सैनिक हैं, और एक कुटिल मस्तिष्क। परन्तु किसे पता है कि युद्ध योद्धाओं के पराक्रम से जीते जाते हैं या नियति की इच्छा से? किसे पता है कि विजय का साकार-स्वरुप और उसका मूल्य क्या होगा? इतिहास किसकी विजय को न्यायोचित ठहरायेगा और किसे दोषपूर्ण? इन्हीं प्रश्नों के उत्तर ढूंढता हुआ यह संस्करण आपके समक्ष प्रस्तुत है।