Autobiography of a Yogi ( Hindi Edition of Autobiography of a Yogi

Autobiography of a Yogi ( Hindi Edition of Autobiography of a Yogi

Author : Paramahansa Yogananda

In stock
Rs. 175.00
Classification Autobiography/ Spirituality
Pub Date Third Edition, 2016
Imprint Yogoda Satsang Society of India
Page Extent 704 pages
Binding Paperback
Language Hindi
ISBN 9788190256216
In stock
Rs. 175.00
(inclusive all taxes)
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About the Book

योगानन्दजी की 'आत्मकथा' का महत्व इस तथ्य के प्रकाश मैं बहुत अधिक बढ़ जाता है कि यह भारत के ज्ञानी पुरुषों के विषय में अंग्रेजी में लिखी गयी गिनी-चुनी पुस्तकों में से एक है, जिसके लेखक न तो कोई पत्रकार हैं और न ही कोई विदेशी, बल्कि वे स्वयं वैसे ही ज्ञानी महापुरुषों में से एक हैं- सारांश यह कि यह पुस्तक योगियों के विषय में स्वयं एक योगी द्वारा लिखी गई है I एक प्रत्यक्षदर्शी के नाते आधुनिक हिन्दू-संतों की असाधारण जीवन-कथाओं एवं अलौकिक शक्तियों के वर्णनों से युक्त इस पुस्तक का सामयिक और सर्वकालिक, दोनों दृष्टियों से महत्व है I इस पुस्तक के लेखक के प्रति हर पाठक श्रद्धावनत और कृतज्ञ रहेगा I निस्सन्देह उनकी असाधारण जीवन-कथा हिन्दू मन तथा ह्रदय की गहराईयों एवं भारत की आध्यात्मिक सम्पदा पर अत्यधिक प्रकाश डालने वाला पश्चिम में प्रकाशित पुस्तकों में से एक है I
परमहंस योगानन्दजी की आत्मकथा 'योगी कथामृत' ( ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ अ योगी) के असंख्य पाठक उसके पृष्ठों में उनके उसी आध्यात्मिक प्रभुत्व के प्रकाश की उपस्थित के साक्षी हैं, जो उनके व्यक्तित्व से विकीर्ण होती थी I साठ से अधिक वर्ष पूर्व जब यह प्रथम बार प्रकाशित हुई; अत्यधिक कृति के रूप में इसका अभिवादन हुआ I पुस्तक ने न केवल एक सुस्पष्ट महँ जीवन की कथा कही, अपितु पूर्व के आध्यात्मिक विचारों का - विशेष कर ईश्वर के साथ प्रत्यक्ष संपर्क करने के विज्ञानं का हृदयग्राही परिचय दिया- पाश्चात्य लोगों के लिए ज्ञान के उस विषय को प्रकट किया जो अब तक कुछ ही लोगों के लिए सुलभ था I
'योगी कथामृत' (ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ अ योगी) को आज आध्यात्मिक साहित्य के गौरवग्रंथ के रूप में मान्यता प्राप्त है I

About the Author(s)

श्री श्री परमहंस योगानन्दजी का जन्म ५ जनवरी, १८९३ को गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ. उन्होंने अपना जीवन सभी जातियों एवं धर्मों के लोगों को, उनके जीवन में मानवीय चैतन्य की सुंदरता, संस्कृति एवं सच्ची दिव्यता के अनुभव एवं पूर्ण अभिव्यक्ति में सहायता हेतु समर्पित किया.
१९१५ में कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद श्री योगानन्दजी को उनके गुरु श्री श्री स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरिजी ने सन्यास की दीक्षा दी I परमहंस योगानन्दजी ने अपनी शिक्षाओं के प्रसार के लिए योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इंडिया/सेल्फ-हेल्प-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप की स्थापना की I अपने लेखों एवं भारत, अमेरिका तथा यूरोप के सघन दौरों में अपने व्याख्यानों द्वारा तथा अनेकों आश्रम व् ध्यान केंद्र बनाकर उनके माध्यम से उन्होंने सत्यान्विशियों को योग के प्राचीन विज्ञानं एवं दर्शन से तथा इसकी सर्वानुकूल ध्यान पद्धतियों से परिचित करवाया I परमहंसजी ७ मार्च १९५२ को लॉस एंजेलिस में महासमाधि में प्रविष्ट हुए I

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