About the Book
योगानन्दजी की 'आत्मकथा' का महत्व इस तथ्य के प्रकाश मैं बहुत अधिक बढ़ जाता है कि यह भारत के ज्ञानी पुरुषों के विषय में अंग्रेजी में लिखी गयी गिनी-चुनी पुस्तकों में से एक है, जिसके लेखक न तो कोई पत्रकार हैं और न ही कोई विदेशी, बल्कि वे स्वयं वैसे ही ज्ञानी महापुरुषों में से एक हैं- सारांश यह कि यह पुस्तक योगियों के विषय में स्वयं एक योगी द्वारा लिखी गई है I एक प्रत्यक्षदर्शी के नाते आधुनिक हिन्दू-संतों की असाधारण जीवन-कथाओं एवं अलौकिक शक्तियों के वर्णनों से युक्त इस पुस्तक का सामयिक और सर्वकालिक, दोनों दृष्टियों से महत्व है I इस पुस्तक के लेखक के प्रति हर पाठक श्रद्धावनत और कृतज्ञ रहेगा I निस्सन्देह उनकी असाधारण जीवन-कथा हिन्दू मन तथा ह्रदय की गहराईयों एवं भारत की आध्यात्मिक सम्पदा पर अत्यधिक प्रकाश डालने वाला पश्चिम में प्रकाशित पुस्तकों में से एक है I
'योगी कथामृत' (ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ अ योगी) को आज आध्यात्मिक साहित्य के गौरवग्रंथ के रूप में मान्यता प्राप्त है I
About the Author(s)
श्री श्री परमहंस योगानन्दजी का जन्म ५ जनवरी, १८९३ को गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ. उन्होंने अपना जीवन सभी जातियों एवं धर्मों के लोगों को, उनके जीवन में मानवीय चैतन्य की सुंदरता, संस्कृति एवं सच्ची दिव्यता के अनुभव एवं पूर्ण अभिव्यक्ति में सहायता हेतु समर्पित किया.
१९१५ में कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद श्री योगानन्दजी को उनके गुरु श्री श्री स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरिजी ने सन्यास की दीक्षा दी I परमहंस योगानन्दजी ने अपनी शिक्षाओं के प्रसार के लिए योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इंडिया/सेल्फ-हेल्प-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप की स्थापना की I अपने लेखों एवं भारत, अमेरिका तथा यूरोप के सघन दौरों में अपने व्याख्यानों द्वारा तथा अनेकों आश्रम व् ध्यान केंद्र बनाकर उनके माध्यम से उन्होंने सत्यान्विशियों को योग के प्राचीन विज्ञानं एवं दर्शन से तथा इसकी सर्वानुकूल ध्यान पद्धतियों से परिचित करवाया I परमहंसजी ७ मार्च १९५२ को लॉस एंजेलिस में महासमाधि में प्रविष्ट हुए I