Ghalib  ( Hindi)

Ghalib ( Hindi)

Author : Mirza Ghalib; Compiler - O.P Sharma

In stock
Rs. 199.00
Classification Poetry
Pub Date September 2019
Imprint Manjul Publishing House
Page Extent 158
Binding Paperback
Language Hindi
ISBN 9789389143553
In stock
Rs. 199.00
(inclusive all taxes)
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About the Book

उर्दू साहित्य में मिर्ज़ा असदउल्लाह खां 'ग़ालिब' का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी शायरी में ज़िन्दगी के वे सभी रंग मौजूद हैं, जिनके कारण उनकी शायरी हरदिल अज़ीज़ बन गयी है।
अपनी शायरी के बारे में उन्होनें एक शे'र कहा था, जो शायरी के शौक़ीनों की ज़बान पर रहता है -
ये मिसाइले तसव्वुफ़, ये तेरा बयान 'ग़ालिब'
तुझे हम वली समझते, जो न बादाख़्वार होता
उर्दू अदब के मक़्बूल शायर मिर्ज़ा 'ग़ालिब' का नाम किसी तअर्रुफ़ का मोहताज नहीं। उनकी एक-एक शेर ख़ुद बोलकर उनका तअर्रुफ़ दे पाने की हैसियत रखता है। मिर्ज़ा 'ग़ालिब' के अशआर को पढ़कर उनकी ज़िन्दगी से वाक़िफ़ हुआ जा सकता है।

About the Author(s)

'ग़ालिब' का जन्म 27 दिसम्बर, 1797 को आगरा (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्लाबेग खां था। 'ग़ालिब' जब पांच साल के थे, तभी उनके पिता का देहान्त हो गया, जिसके बाद उनकी परवरिश उनके चाचा नसरुल्लाह बेग खां ने की। लेकिन एक साल बाद छह साल के 'असद' को अपने चाचा के प्यार से भी महरूम होना पड़ा और 'असद' अपने ननिहाल पहुंच गये, जहां उनका बचपन बड़े ऐशो-आराम के बीच गुज़रा।
शादी के तीन बरस बाद 'ग़ालिब' दिल्ली चले आये और दिल्ली के ही होकर रह गये। 'ग़ालिब' का ज़्यादातर कलाम फ़ारसी में है क्योंकि उन दिनों उर्दू ज़बान का इस्तेमाल करना शान के ख़िलाफ़ समझा जाता था। लेकिन 'ग़ालिब' ने उर्दू में शायरी की। उनकी शायरी में भी फ़ारसी शब्दों की भरमार है और इसलिये उनकी शायरी आम आदमी की समझ से बहुत दूर है, लेकिन उनका नाम उर्दू शाइरों को फ़ेहरिस्त में सबसे ऊपर है।
शराब की लत के कारण 'ग़ालिब' हमेशा ही तंगदस्त रहे। वज़ीफ़े और पेंशन की राशि से ही उनका गुज़र-बसर होती रही और 15 फ़रवरी, 1869, को दिल्ली में उनका निधन हो गया। हज़रत निजामुद्दीन औलिआ की दरगाह के पास ही 'ग़ालिब' की मज़ार है, जहां आज भी उनके चाहने वाले उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दिया करते हैं।

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