About the Book
ग़ज़ल के साथ या ज़िन्दगी के साथ जो भी गुफ़्तगु हुई
वो ग़ज़ल की शक्ल में ढल गई। ‘ग़ज़ल जाग रही है’ ऐसी ही
ग़ुफ्तगु का सफ़र है जिसमें हर बार एक नया ही जीने का ऩजरिया
बन पड़ा है। हर बार नई बात या नई सोच से पुराने
एहसासों को पिरोया गया है।
ग़ज़ल के साथ या ज़िन्दगी के साथ जो भी गुफ़्तगु हुई
वो ग़ज़ल की शक्ल में ढल गई। ‘ग़ज़ल जाग रही है’ ऐसी ही
ग़ुफ्तगु का सफ़र है जिसमें हर बार एक नया ही जीने का ऩजरिया
बन पड़ा है। हर बार नई बात या नई सोच से पुराने
एहसासों को पिरोया गया है।