About the Book
मेरे तो दर्द भी औरों के काम आते हैं
में रो पडूँ तो कई लोग मुस्कुराते हैं
कागज़ की एक नाव अगर पार हो गई
इसमें समन्दरों की कहाँ हार हो गई
इन चाहतों का कोई नतीजा नहीं तो क्या
हम तो उसी के हैं वो हमारा नहीं तो क्या
ख़ुद पे इस और क़यामत नहीं होगी हम से
दूसरी बार मोहब्बत नहीं होगी हम से
तारिक़ क़मर जैसा शायर ग़ज़ल को मुकद्दर से ही मिलता है, जब-जब इनको सुनता या पढता हूँ तो एक नई तरह की ताज़गी का अहसास होता है। शे'र कहना आसान है, लेकिन अपना शे'र अपने अन्दाज़ से कहना मुश्किल है और तारिक़ क़मर इस मुश्किल को आसान करने का हुनर जानते हैं। ज़िन्दगी और शायरी के रिश्ते को ऐतबार अता करती हुई ये आवाज़ हमारी शायरी की एक ऐसी आवाज़ है, जो नए ख़त-ओ-खाल के साथ अपनी इंफरादियत का अहसास कराती है। तारिक़ क़मर की शायरी को आने वाला वक़्त भी फ़रामोश नहीं कर सकेगा।
-जावेद अख़्तर
तारिक़ क़मर हमारी नई शायरी का आठवां सुर हैं और उन महफ़िलों में भी बहुत संजीदगी से सुने जाते हैं जो ग़ैर संजीदा होती जा रही हैं। वो आला तालीम के साथ-साथ एहसास ओ अफ़कार की इस दौलत से भी माला-माल हैं, जिसका तक़ाज़ा हमारी संजीदा शायर से करती हैं
-रहत इंदौरी