About the Book
वो जिसके नाम से लज्ज़त बहुत है
उसी के ज़िक्र से बरकार बहुत है
अभी सूरज ने लैब खोले नहीं हैं
अभी से धुप में शिद्दत बहुत है
मुझे सोने की क़ीमत मत बताओ
में मिट्टी हूँ मेरी अज़मत बहुत है
किसी की याद में खोये रहेंगे
गुनहगारों को ये जन्नत बहुत है
उन्हें मसरूफ़ रहने का मरज़ था
उन्हें भी आजकल फ़ुरसत बहुत है
कभी तो हुस्न का सदक़ा निकालो
तुम्हारे पास ये दौलत बहुत है
ग़ज़ल खुद कहके पढ़ना चाहते हो
मियाँ इस काम में मेहनत बहुत है
डॉ. अंजुम बाराबंकवी बुनियादी तौर पर ग़ज़ल के शायर हैं I उनकी ग़ज़लों मैं सागर को गागर मैं सामने का फ़न है और सूफ़ियत भी. वे इतिहास और वर्तमान को तुलनात्मक दृष्टि से देखते हैं, साथ ही वे परिवर्तन के पक्षधर भी हैं, और यथास्थिति के विरुद्ध आक्रोश उनकी लिखावट मैं स्पष्ट महसूस किया जा सकता है.
अंजुम यथार्त की भावभूमि पर खड़ा हुआ कल्पनाओं के तार बुनने वाला बाँका शायर है. उनकी अवलोकन और निरीक्षण की क्षमता अदभुत है. इनकी रचनाओं में अवध की तहज़ीबों की झलक भी मिलती है और ज़िन्दगी के सभी रंगों का रास भी.
अंजुम बाराबंकवी के इस मयार के शेरोन को नकल करूँ, सारी दुनिया में जहाँ जहाँ ग़ज़ल के मिज़ाज़दां हैं, वो चाहे हिंदी वाले हो या उर्दू वाले, अंजुम बाराबंकवी को आज की गज़ल का ख़ूबसूरत शाइर मानते हैं और उनके शऊर और लाशऊर में इनके कई अशआर महफूज़ रहते हैं.
- पद्मश्री डॉ. बशीर बद्र
डॉ. अंजुम बाराबंकवी भी शायर में अपनी अदाओं के साथ हमारे सामने हैं. वे एक ख़ास प्रकार की शख़्सियत इस रूप में भी रखते हैं की उन्होंने खुमार बाराबंकवी और डॉ. बशीर बद्र जैसे जाने-पहचाने समकालीन शायरों पर काम किया है! इसलिए शायर क्या होती है, इसके गन तो वो जान ही चुके हैं. मुशायरे की शायरी क्या होती है, इसे भी मुशायरों में आते-जाते उन्होंने जान लिया है.
- डॉ. विजय बहादुर सिंह
ज़बान सादा और लहज़ा आसानी से दिलों में धार कर लेने वाला है. किताब का सरेवरक भी दीदी जैब है और उस पर मौजूद मुनतखिब अशआर से अंदर से गौहर पारों का पता चलता है.
- जस्टिस एम्.ऐस.ए. सिद्दीकी