About the Book
हमारी भारतीय संस्कृति के पास एक विशिष्ट माध्यम है जो पूरी दुनिया में किसी के पास नहीं है - वह है संन्यास। गहराई में जा कर देखें तो संन्यास और सोशल डिस्टेंसिंग एक ही है। संन्यास दिव्य स्थिति है और सोशल डिस्टेंसिंग व्यवहारिक अनुशासन है। हम कोरोना के साथ क्या कर सकते है इसे समझने में हमारी भारतीय मौलिकता काम आएगी जो अध्यात्म का ही दूसरा रूप है। हम धर्म और अध्यात्म का अंतर इस पुस्तक के माध्यम से समझ सकते हैं। धर्म शरीर है तो अध्यात्म आत्मा है, धर्म सतह है तो आत्मा गहराई है, धर्म ऊर्जा है तो आत्मा शक्ति है, धर्म हमारी पहचान है तो आत्मा हमारा अस्तित्व है। यह पुस्तक हमें समझाती है कि कोरोना का प्रहार शरीर पर होगा और आहत भी शरीर होगा। आत्मा की अनुभूति ही आत्मा की समझ है, जिसने आत्मा पर इस दौर में स्वयं को टिका लिया उसका आत्मबल ही कोरोना को पराजित करेगा।
About the Author(s)
पंडित विजय शंकर मेहता जीवन प्रबंधन गुरु हैं। वे नई दृष्टि और अद्भुत वाक् शैली के साथ धर्म और अध्यात्म पर व्याख्यान के लिए देश और दुनिया में विख्यात हैं। बैंक, रंगकर्म और पत्रकारिता से जु़डे रहने के बाद 2008 से आध्यात्मिक विषयों पर व्याख्यान दे रहे हैं। वे श्रीमद् भागवत कथा, शिवपुराण, रामकथा, हनुमान चरित्र को जीवन से जोडते हुए कई विषयों पर व्याख्यान देते हैं। आप दैनिक भास्कर अखबार के हिन्दी, गुजराती व मराठी संस्करणों में दैनिक स्तम्भ जीने की राह लिखते हैं। आप उज्जैन में स्थित हनुमान चालीसा ध्यान केन्द्र शांतम के मुख्य संस्थापक हैं तथा हनुमान चालीसा द्वारा ध्यान का विशेष कोर्स करवाते हैं।
मीडिया एंटरप्रेन्योर अंशु हर्ष मासिक पत्रिका सिम्पली जयपुर और साप्ताहिक समाचार-पत्र वॉइस ऑफ़ जयपुर की सम्पादक और प्रकाशक हैं। शब्दों को कविता और कहानी के रूप में काग़ज़ पर उतार देना उनके हर दिन का हिस्सा है। शब्दों का समंदर उनका कविता संग्रह है।