About the Book
एक बार असुर रावण का दुस्साहस और दूसरी बार अयोध्यावासियों
की ओछी सोच सीता को उनके आराध्य राम से पृथक करने का कारण बनी। लेकिन क्या यह सत्य है कि सीता राम से विलग हुई थीं? कदापि नहीं... सत्य यह है कि सीता और राम सदैव एक-दूसरे के कर्म और वाणी में रहे। विशेषत: सीता का विलक्षण जीवन और कार्य युगों से भारतीयों को
राह दिखाते आये हैं। दिन-प्रतिदिन के उतार-चढ़ावों, संकटों,
झंझावातों और असंतोष में केवल सीता-राम ही
शाश्वत शांति प्रदान करते हैं।
लेखक इस पुस्तक के माध्यम से वैदेही के जीवन के
उन पहलुओं को विस्तार से सामने लाते हैं, जिन्हें लेकर आमजन प्राय:
प्रश्नों से घिरा रहा है। वह सीता में अंतर्निहित उस अबूझ लीला को प्रकट करते हैं, जो त्रेता से लेकर कलियुग तक के मानवों की जिज्ञासा संतुष्ट करती है। वे बड़े नाटकीय, यद्यपि सहज भाव से बताते हैं कि सीता का जीवन किस तरह ज्ञान, दर्शन और चरित्र की त्रिवेणी में नहाया हुआ है। जानकी का बाह्य जितना आकर्षक और चुंबकीय है, उनका अंतर उससे सहस्र गुना निर्मल और पवित्र है। सीता के चिंतन में निहित भारत की आध्यात्मिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक चेतना को ही यह कथा प्रतिबिम्बित करती है।
About the Author(s)
मन काग़ज़ के हवाले करना उनका नया अनुराग है, जिससे वह शब्दों को आत्मतुष्टि का माध्यम बनाते हैं। मध्यप्रदेश में चंबल के दुर्गम बीहड़ों के बीच बसे शहर भिण्ड में संजय श्रीवास्तव का जन्म 14 मई, 1968 को हुआ। चिरकालीन दस्यु परंपरा वाले भिण्ड की जटिलता, विचित्रता तथा ऐतिहासिकता ने संजय को हमेशा अभिभूत रखा, जो उनके व्यक्तित्व और लेखन में नज़र आती है। उन्होंने भिण्ड से स्कूली पढ़ाई पूरी की और फिर स्थापत्य/वास्तुकला में तकनीकी शिक्षा हेतु एमआईटीएस, ग्वालियर चले गए। साल 1991 में उन्होंने बढ़िया अंकों के साथ बैचलर ऑफ़ आर्किटेक्चर में स्नातक किया और 1992 से इंदौर में अपना काम शुरू किया। कला, शिल्प और वन्यजीवन के प्रति लगाव उन्हें रेखाचित्र, रंगशिल्प, फ़ोटोग्राफ़ी और देशभर के अभयारण्यों की ओर ले जाता रहा। चूंकि माता-पिता दोनों शिक्षक थे, अत: विश्लेषण का कौशल और साहित्यिक नज़रिया उन्हें विरासत में मिला। उनके काम ने उन्हें कई सम्मान दिलाए, जिनमें साल 2002 में जेके सीमेंट की तरफ़ से ‘यंग आर्किटेक्ट ऑफ़ इंडिया’ अवार्ड भी शामिल है। ज़्यादातर समय आर्किटेक्चरल रत्न गढ़ने में गुज़ारने वाले संजय ने अपनी हिंदू मान्यताओं और परंपराओं की गलियां छानना कभी नहीं छोड़ा। आर्किटेक्ट पत्नी ॠतु और अमेरिका में कार्यरत बेटी अनुकृति इस तमाम कर्मयात्रा में संजय की प्रेरणा रहीं। बतौर लेखक संजय अपनी पहली किताब गर्भ योद्धा पाठकों को सौंप रहे हैं।
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