Zafar ( Hindi)

Zafar ( Hindi)

Author : Bahadur Shah Zafar; COMPILER - O.P Sharma

In stock
Rs. 150.00
Classification Poetry
Pub Date September 2019
Imprint Manjul Publishing House
Page Extent 122
Binding Paperback
Language Hindi
ISBN 9789389143539
In stock
Rs. 150.00
(inclusive all taxes)
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About the Book

बहादुर शाह ज़फ़र की शायरी में एक अजीब तरह का दर्द छिपा हुआ है। विद्रोह और फिर उनके रंगून में निर्वासित होने के बाद ये ग़म और भी स्पष्ट तौर पर उनकी शायरी में नज़र आता है। 'ज़फर' एक शाइर और एक अच्छे शाइरनवाज़ थे। उनके समय में लाल क़िले में मुशाइरों के आयोजन होते रहते थे, जिनमें वे भी शिरकत करते थे। आप उस्ताद 'ज़ौक़' के शागिर्द हो गये थे, पर इसी के साथ आपने अपने वक़्त के मक़्बूल शाइरों 'ग़ालिब' और 'मेमिन' जैसे उस्तादों के सान्निध्य से भी बहुत कुछ सीखा, जिसे उनके कलाम की गहराई तक पहुंचकर ही समझा जा सकता है। आपकी शाइरी में जो गम्भीरता है, उसके कारण उनका नाम उर्दू अदब के एक उज्जवल सितारे के रूप में बराबर याद किया जाता रहेगा।
क़द्र ऐ इश्क़ रहेगी तेरी क्या मेरे बाद
कि तुझे कोई नहीं पूछने का मेरे बाद

ज़म पर दिल के गवारा है मुझे गो ये नमक
कौन चक्खेगा मोहब्बत का मज़ा मेरे बाद

दर-ए-जानां से मेरी ख़ाक न करना बर्बाद
देख, जाना न उधर बादे-सबा मेरे बाद

ख़ारे-सहरा-ए-जुनूं यूं ही अगर तेज़ रहे
कोई आयेगा नहीं, आबला-पा मेरे बाद

मेरे दम तक है तेरा ऐ दिले-बीमार इलाज
कोई करने का नहीं, तेरी दवा मेरे बाद

उस सितमगर ने मुझे जुर्मे-वफ़ा पर मारा
कोई लेने का नहीं, नामे-वफ़ा मेरे बाद

ऐ 'ज़फर' हो न मोहब्बत को तेरा ग़म क्योंकर
कोई ग़मख्वार-ए-मुहब्बत न हुआ मेरे बाद

About the Author(s)

बहादुर शाह ज़फर (1775-1862) भारत में मुग़ल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह थे और उर्दू के माने हुए शायर थे। उन्होंने १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व किया। युद्ध में हार के बाद अंग्रेजों ने उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) भेज दिया जहाँ उनकी मृत्यु हुई।

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