About the Book
'ताज़ाकार ' ताज़ा शेर मज़्मूआ (ग़ज़ल संग्रह) है जो बहुत जल्द शाया होकर मंजरे-आम पर आने वाला है। इसका नाम ताज़ाकार इसलिए रखा गया है के तमाम कयनाथ ही ताज़ा ब ताज़ा के उसूल पर आधारित है। हर लम्हा एक दूसरे से मुख़्तलिफ़ होने के साथ-साथ ताज़गी से भरपूर होता है। कुदरत का यही उसूल इनसानी ज़िन्दगी को हर वक़्त ताज़गी देकर लुफ्त से भरपूर बनाये रखता है।
'ताज़ाकार' में पूरी कोशिश की गयी है कि फ़िक्रों-ख़याल कि ताज़ाकारी और हुस्नो-कमाल की रंगीनी बरकरार रहे। उम्मीद है ये कलाम इल्मो-अदब की कसौटी पर खरा उतरेगा और इसे बार-बार पढ़ा जाएगा।
About the Author(s)
इब्राहिम 'अश्क' फ़ितरतन नर्म मिजाज़, ख़ुश अख़लाक़ और मुख़लिस इंसान हैं लेकिन फ़िक्रो-फ़न के मुआमलात में इन्तिहाई दयानतदार, ग़यूर, अनापसन्द और हक़गो भी हैं। वह नए अहद की तख़लीक़ियत, कैफ़ आमेज़ शेरियत और दिलपज़ीर मआनवीयत के नुमाइंदा शायर हैं। उन्होंने फिल्मों और सीरियलों के लिए बड़े दिलकश अदबी अंदाज़ के नग्में भी लिखे हैं।
इब्राहिम 'अश्क' बिलकुल नए अंदाज़ में तमाम तर शेर लवाज़िम को बरतते हुई गठी हुई और मरबूत रुबाई तख़लीक़ करने पर क़ादिर हैं और लफ्ज़-लफ्ज़ को लवाज़िमे-शेर से आरास्ता करने का फ़न भी जानते हैं।
'अश्क' ने उर्दू अदब और हिंदी साहित्य में बेहतरीन मज़मून निगार, अफसाना निगार, तन्क़ीद निगार, ड्रामा निगार और स्क्रिप्ट राइटर की हैसियत से भी अपने फ़न का लोहा मनवाया है। विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं एवं अदबी अदारों ने उन्हें एज़ाज़ो-इकराम से भी नवाज़ा है साथ ही साथ सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म गीतकार की हैसियत से भी उन्हें कई अवार्ड मिल चुके हैं।
नज़्म हो या ग़ज़ल, दोहा हो या रुबाई, मसनवी हो या मर्सिया तन्क़ीदी मज़ामीन हों या अफ़साना, हर मैदान में 'अश्क़' ने एक से बढ़कर एक मार्का आराई की है। उन्होंने अदब में अपनी एक नई रविश और एक नई पहचान कायम की है।