About the Book
राग-रंग-रस-रूप
कोहबर काव्य अनूप
कोहबर यानी कि कोष्ठवर ! वर का प्रकोष्ठ ! बिहार में कोहबर के
बिना विवाह की कल्पना भी नहीं की जा सकती !
वह छोटा-सा कमरा जहाँ वर-वधू को बैठाकर देवताओं का पूजन और
अन्य अनुष्ठान करवाए जाते हैं, कोहबर होता है।
इस कक्ष में हास-परिहास भी चलता है ओर इस अवसर पर गाए जाने वाले गीत कोहबर गीत कहलाते हैं।
कोहबर की दीवारों पर घर की स्त्रियाँ गेरू, चावल और हल्दी इत्यादि से जो अईपन चित्र या मांडना बनाती हैं, उसे कोहबर चि़त्र कहते हैं। भारत सरकार ने 12 मई 2020 को झारखण्ड की कोहबर कला को जी.आई. टैग भी प्रदान किया है।
इस सम्मान ही इस कोहबर संकल्न की कल्पना का हेतु बना।
About the Author(s)
अनामिका वर्मा मूलतः झारखण्ड के हज़ारीबाग जिले की निवासी हैं। इनके पिता श्री भुवनेश्वर प्रसाद वर्मा बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे। बचपन से ही इन्हें नृत्य, गीत-संगीत में रूचि थी। बिहार में हर पर्व के लिये लोकगीत होते हैं, जिन्हें गाने के लिये ग्रामीण स्त्रियाँ घर-घर जाती हैं। उन गरीब ग्राम्य गायिकाओं के प्रति अनामिका का हृदय बचपन से ही सजल था।
बड़े होने पर उन्होंने यह पाया कि हर ग्राम्य कलाकार की बनाई वस्तु के लिये बाज़ार में संभावना उपलब्ध है, गीतहारिनों के लिये नहीं। इसलिये उन्होंने लॉकडाउन 2020 के समय प्रधानमंत्री की स्टार्टअप योजना की एक नवीन कल्पना की और गीतहारिनों के गीत सुनकर लिपिबद्ध किये। फिर उन्हें काव्य संकलन के रूप में सुरक्षित करने की दृष्टि से पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने का विचार किया। इस कार्य में आपके पति श्री अभयरंजन और पुत्र अभिज्ञान ने भी सहयोग दिया। अधिक प्रचार-प्रसार हो सके इसलिये उन्होंने अपना यू-ट्यूब चैनल भी शुरू कियाः http://youtube.com/channel/UCYYhc2lgywyA2oIq3uXN9Fw