About the Book
लेखक ने इस पुस्तक में बाईस परीषहों का वर्णन किया है, और वे मूलतः वरिष्ठ आयुर्वेद परामर्शदाता और चिकित्सक हैं। उन्हें चिकित्सकीय क्षेत्र में और ‘शाकाहार अहिंसा जीव दया’ पर कार्य करते हुए लगभग पचास वर्ष हो गए हैं। पूर्व में कई मुनियों, आर्यिकाओं व ब्रह्मचारी बहिन-भाइयों की चिकित्सा करने का सुअवसर मिला, लेकिन पदोन्नति के कारण अनवरत स्थानान्तरण होने से धीरे-धीरे संपर्क कम हो गया। चिकित्सा के दौरान मुनियों का परिषह यानी कष्ट सहकर स्वविवेक से अंगीकार निराकुल भावों से, समत्व भाव से मोक्ष मार्ग पर चलते रहना बड़ा अविश्वस्नीय लगता था। कुछ अध्ययन करने के बाद यह अहसास हुआ की मुनि धर्म का पालन करना ‘असिधारा’ है। वहीं क्षत्रिय धर्म में समझौते की कोई गुंजाईश नहीं है।
बाह्य आवरण दिगम्बर होने से सामाजिक व्यवस्था के अनुकूल न होने के कारण कभी-कभी अप्रिय स्थिति भी निर्मित होती है, पर गहराई से मनन-चिंतन करने के उपरांत भ्राँतियाँ निर्मूल हो जाती हैं।
पुस्तक पठनीय, ज्ञानवर्धक और अनुकरणीय प्रतीत होगी, ऐसी पाठकों से अपेक्षा है।