About the Book
कितना सुंदर हो
अगर तुलनाएँ छोड़ दी जाएँ
मानक की मान्यताएँ तोड़ दी जाएँ
कितना सुंदर हो
अगर तुम्हारे चेहरे को
कोई फूल या चाँद ना लिखे
तुम्हारी आंखों को
आँख ही कहा जाए
तुम्हारे बाल ना बने घटाएँ
तुम्हारे हाथ, तुम्हारे हाथ हों
ना समझे कोई उन्हें लताएँ
विशेष को पूजनीय मानने के इस दौर में
साधारण होने की कोशिश भी कठिन है
फिर भी मैंने लिखनी चाही
भारी रूपकों के बिना
अनगढ़ छंदों में
अलंकारों से मुक्त
तीन अक्षरों की एक सरल सी कविता
जिसमें केवल “मैं”, “तुम” और “प्रेम” हों
About the Author(s)
उच्च शिक्षा उत्कृष्टता संस्थान, भोपाल से स्नातक की उपाधि के बाद हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल से हिंदी विषय में परास्नातक (विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त) तत्पश्चात नेट-जेआरएफ की परीक्षा लगातार 7 बार तथा अलग-अलग राज्यों की सेट (राज्य पात्रता परीक्षा) परीक्षा उत्तीर्ण होने के साथ ही अनुवाद में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा।
तेईस साल की उम्र से मध्यप्रदेश के शासकीय महाविद्यालय में गेस्टप्रोफेसर के रूप में कार्यरत रहे और वर्तमान में अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल के हिंदी विभाग में सहायक प्राध्यापक (विभागाध्यक्ष) के रूप में कार्यरत हैं। ये इनका पहला काव्य संग्रह है जो मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी की प्रथम कृति अनुदान योजना के अंतर्गत चयनित है।