About the Book
पिछले संस्करण में आपने देखा कि अशोक उज्जैनी के विद्रोह को शांत करने में सफल रहा। जब वह पाटलिपुत्र लौटा, तब सम्राट बिंदुसार ने उसे पुरस्कार-स्वरुप मगध से निष्कासन दे दिया। अशोक को अत्यंत क्रोध आया और उसने मगध का त्याग कर दिया। दूसरी ओर, सुशीम ने अपने अहं के मद में कुछ ऐसे निर्णय लिये जिनसे तक्षशिला में भय और विरोध का वातावरण व्याप्त होकर रह गया।
अब तक्षशिला में यवनों का विरोध प्रत्यक्ष स्वरुप ले चुका है और सुशीम उसे कुचल पाने में असमर्थ रहा है। इसलिये पाटलिपुत्र की मगध-सत्ता ने पुन: अशोक को स्मरण किया है। परन्तु क्या अशोक अपने अपमान को भुलाकर तक्षशिला का प्रस्ताव स्वीकार करेगा? और अगर वह तक्षशिला की ओर प्रस्थान कर भी देता है, तो क्या वह यवनों के विद्रोह को शांत कर पाने में समर्थ होगा? पाटलिपुत्र में व्याप्त अव्यवस्था और राजनैतिक अस्थिरता का भविष्य क्या होगा?
इन प्रश्नों के उत्तर लेकर प्रस्तुत है यह संस्करण।