About the Book
“क्या प्राण डालने का अधिकार हमें प्राप्त होगा?” महाराज यम ने ब्रह्मदेव से पूछा। ब्रह्मदेव चिन्तित मुद्रा में अपने आसन पर आसीन थे। “प्राण हरण का कार्य दे कर ब्रह्मदेव ने मेरी प्रतिष्ठा को धूमिल कर दिया है। पितरस, हमको एहसास हो गया है कि हमें प्राण डालने का अधिकार नहीं मिल सकता। हम कभी भी देवगण की श्रेणी में नहीं आ सकते। हम अमर हैं, देव हैं, लेकिन कोई हमें देव की श्रेणी में नहीं रखता। अब हमें थोड़ी सी उम्मीद दानकन्या से है, लेकिन उससे भी सम्पर्क नहीं हो पा रहा है।”
“जब सम्पर्क नहीं हो पा रहा है तो आप कैसे कह सकते हैं कि दानकन्या अपने मकसद में सफल हो जाएगी?”
“क्योंकि हमने सम्राट की परछाई में उसको प्रवेश दिया था। कुछ भी हो, चाहे व्यक्ति जीवित हो या मृत, परछाई उसका साथ कभी नहीं छोड़ती । दानकन्या आज भी सम्राट के साथ है। सम्राट की सफलता दानकन्या की सफलता है। बस एक बार दानकन्या से सम्पर्क स्थापित हो जाए और पता चल जाए कि वास्तव में अब क्या स्थिति है। उसके अनुसार रणनीति बनाई जाए।”
“अब हमें क्या करना है?”
“माया को सम्राट की तलाश के लिये नगरी के निर्माण का दायित्व दिया है।
शीघ्र ही मायानगरी का सम्राट हमें प्राप्त होगा।”