About the Book
बीता हुआ कुछ समय श्रीमति सतीश ओबेरॉय के लिए संघर्ष भरा रहा है। जब वे कोविड से ग्रस्त हो गईं तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। उन उदास पलों में वे खिड़की पर बैठी जीवन और मृत्यु को निहारती रहती थीं। तब उन्हें यह प्रेरणा हुई की साँसों के आने-जाने में कितना अंतर है। प्रभु की कृपा के बिना एक भी साँस लेना असंभव है। वे ईश्वर से शक्ति माँगती हैं कि वे अपना जीवन सार्थक कर सकें। वे प्रभु से प्रार्थना करती हैं कि जिस उद्देश्य के लिए उनका जन्म हुआ उसे वे पूरा कर सकें। इसी प्रेरणा के साथ उन्होंने यह पुस्तक लिखी है।
About the Author(s)
श्रीमती सतीश ओबेरॉय भोपाल की एक जानी-मानी हस्ती हैं। पिछले छः दशकों से उन्होंने भोपाल में सक्रिय समाज सेवा के क्षेत्र में आदर और प्रशंसा प्राप्त की है। उनका निजी और सामाजिक जीवन दोनों ही प्रेरणास्त्रोत हैं। उनका नाम 1975 की ”भारत की महिलाएँ“ इस निदेशिका में उल्लेखित है।
उनका जन्म 21 नवम्बर, 1932 को फिरोज़पुर में हुआ था। सामाजिक कार्य की प्रेरणा यहीं से उन्हें विरासत में मिली।
वैसे तो वे कई संस्थाओं से संबद्ध थीं, किंतु सबसे अधिक समय तक वे प्रमुख रूप से आनंद विहार स्कूल, भोपाल तथा वनिता समाज से जुड़ी रहीं। उनके कार्यकाल में वे दो बार इन संस्थाओं की सचिव, कोषाध्यक्ष, निर्वाहक तथा अध्यक्ष रह चुकी हैं। साथ ही वे आनंद विहार स्कूल के अध्यक्ष के रूप में तब से कार्य कर रही थीं, जब वह एक पूर्व-प्राथमिक विद्यालय था। श्रीमती ओबेरॉय ने न केवल भारतीय संस्थाओं में अपनी छाप छोड़ी है, बल्कि इनर व्हील इंटरनेशनल जैसी संस्था के साथ भी कार्य किया है। इस संस्था में कार्य के दौरान वे अमेरिका तथा कनाडा भी जाकर आई हैं।