About the Book
पहाड़, नदियों के प्रेमी सुरेश पटवा ने अपनी प्रकृति के अनुकूल बौद्धिक चातुर्य से सतपुड़ा के पूरे क्षेत्र का किताबों और घुमंतू तरीक़ों से अनुसंधान करके एक उत्कृष्ट कृति सुरम्य सतपुड़ा रची है।
बहुधा लोग हिमालय की चोटियों, घाटियों, नदियों, तराई के जंगलों के प्रति आकर्षित होते हैं, पर्यटन की योजना बनाते हैं। किंतु सतपुड़ा और विंध्याचल वृष्टिछाया में रह जाते हैं। जिज्ञासु प्रकृति, शोधप्रिय, पर्यटन प्रेमी और अध्ययनशील श्री पटवा बाल्यकाल से प्रकृति की सुंदरता से प्रेरित होते रहे।
कवियों ने भी सतपुड़ा को जानने समझने की कोशिशें की हैं किंतु शत-प्रतिशत सफलता मिली केवल कविवर पं. भवानी प्रसाद मिश्र को। सुरम्य सतपुड़ा में मिश्र जी की कविता को सजाया गया है। सतपुड़ा का अलौकिक सौंदर्य बरसात के मौसम में अद्भुत होता है जब हज़ारों झरने-प्रपात मचलते खिलखिलाते कलकल ध्वनियों से रुमानी माहौल रचते नीले आकाश की बिछावन पर काले-स़फेद बादलों के आलिंगन में रसारस होते हैं।
गंगा के मैदान को हिमालय, सतपुड़ा, विंध्याचल मिलकर समृद्ध करते हैं। यदि ये न होते तो गंगा का उर्वरक मैदान रेतीला बियाबान होता। सतपुड़ा के साये में बान्धवगढ़, कान्हा-किसली, पचमढ़ी का बाघ अभयारण्य शेरों के लिए सुरक्षित और जैव विविधता का स्वर्ग न होता। इसे आँखों से मन-मस्तिष्क और हृदय में उतारने पर ही सार्थकता है।