About the Book
सभी को आनंद और उत्तम स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिले।
“शरीरं खलु साधनं” अर्थात शरीर में ही रोगों का स्थान है। रोग के स्थान मन
और शरीर हैं। यदि मन अस्वस्थ होता है तो उसका प्रभाव शरीर पर पड़ता है और शरीर रुग्ण हो तो उसका प्रभाव मन पर पड़ता है, दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। स्वस्थ शरीर से हम धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष व पुरुषार्थ प्राप्त कर सकते हैं।
चिकित्सा शास्त्र का सिद्धांत है स्वस्थ मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा करना और
जो रोगी हैं उनकी चिकित्सा करना। यहाँ बहुत ही महत्वपूर्ण बात यह है की दोषों की विषमता रोग है और उसे सामान्य अवस्था में लाना चिकित्सा है। यह सिद्धांत मानव जीवन के उत्थान के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब तक जीवन में समता भाव नहीं आएगा तब तक सुखानुभूति नहीं हो सकती। यह बात स्वास्थ्य के साथ अध्यात्म क्षेत्र पर भी लागू होती है। आज चारों ओर विषमताएं होने से व्यक्ति, समाज, देश और विश्व में अशांति है, जिसका मूल कारण समता भाव का न होना है।
स्वस्थ व्यक्ति ही स्वस्थ समाज की नींव है। व्यक्ति की सम्मुन्नति से परिवार,
समाज की उन्नति है और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहकर आप तन, मन, धन से संपन्न रह सकेंगे। एक रुग्ण व्यक्ति स्वयं के साथ परिवार, और देश के लिए भार स्वरूप हो जाता है। इससे राष्ट्र को भी व्यक्ति के रखरखाव में खर्च वहन करना पड़ता है। इस पुस्तक में यही प्रयास किया गया है कि व्यक्तिगत रूप से स्वस्थ रहकर स्वयं, परिवार, समाज और राष्ट्र सम्मुन्नत बन सके।
प्रस्तुत पुस्तक में 12 अध्याय हैं जिनमें एकल द्रव्य, व्याधियां, मानसिक रोग,
स्त्री, पुरुष, बाल रोग, स्वस्थ जीवन जीने के सूत्र, ऋतु चर्या, दिन चर्या, आयुर्वेद चिकित्सा, त्रय स्तम्भ, कोरोना से सम्बंधित जानकारी समाहित है।
चिकित्सा शास्त्र अत्यंत प्रगतिशील और नित्य नए खोजों में संलग्न रहता है,
इसको अद्यतन करना दुरूह कार्य है, पर इस पुस्तक में अधिकतम समायोजित कर जानकारी देने का प्रयास किया गया है जो जनसामान्य के लिए लाभकारी होगा।
पुस्तक जानकारीयुक्त और संग्रहणीय है।