About the Book
स्वरों के आघात के पूर्व स्वरों का आभास होना चाहिये। स्वरों की सूक्ष्मतम परतें उनके प्रस्फुटन के पूर्व ही मस्तिष्क में तरंगित हो जाती हैं। ध्यान के केंद्र में स्थिर स्वरों की ये अंतर्ध्वनियाँ परत दर परत पिघलने लगती हैं जिसे 'सुनता हैं गुरु ज्ञानी' और वे श्रुत होकर गुरुमुख से श्रुतियों के रूप में झरने लगती हैं। इस पुस्तक का शीर्षक 'सुनता है गुरु ज्ञानी' रखने के पीछे भी यही ध्येय है कि हम उस ज्ञानी गुरु के प्रवाह को आप तक पहुँचाने का प्रयास कर सकें।
About the Author(s)
उमाकांत व रमाकांत गुंदेचा ने ध्रुपद गायन की शिक्षा उस्ताद ज़िया फरीदुद्दीन डागर से प्राप्त की। अखिलेश गुंदेचा ने पखावज की शिक्षा पण्डित श्रीकान्त मिश्र एवं राजा छत्रपति सिंह जूवेद से ग्रहण की। ध्रुपद संगीत को पूरी दुनिया में व्यापक रसिक समाज तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण योगदान। भोपाल में ध्रुपद संस्थान की स्तापना। अब तक लगभग ४० सी.डी. प्रकाशित। दुनिया के लगभग 25 देशों में ध्रुपद गायन एवं कार्यशालाएँ। कुमार गंधर्व सम्मान सहित अनेकों सम्मान। 2012 में पद्मश्री से सम्मानित।