The Lost World of A Hindustani Music ( Hindi)

The Lost World of A Hindustani Music ( Hindi)

Author : Kumar Prasad Mukherji

In stock
Rs. 499.00
Classification Non Fiction
Pub Date Sep 2022
Imprint Manjul Publishing House
Page Extent 384
Binding Paperback
Language Hindi
ISBN 9789355430366
In stock
Rs. 499.00
(inclusive all taxes)
OR
About the Book

हिन्दुस्तानी संगीत
एक दुनिया जो कहीं खो गई

‘कुदरत तेरी रंग बिरंगी’ - ये बोल थे उस भजन के जो अब्दुल करीम ख़ान ने सूफ़ी संत ताजुद्दीन बाबा के सामने गाया। वह पीर मुर्शिद इस भजन से सम्मोहित होकर तालियां बजाते हुए नाचने लगा।
कुमार प्रसाद की संगीत दिग्गजों के लुप्त होने के युग की इस करुण कथा में, गायक कलाकार और श्रोताओं के बीच, गायन तथा करतल ध्वनि के बीच के ऐसे बहुत से साझे अनुभवों का वर्णन किया गया है। यह कृति इतिहास की छायाओं में विलीन होती एक ऐसी दुनिया को दी गई विदाई है जिसमें उस्तादों, पंडितों, धनाढ्यों, यशस्वियों, पवित्र आत्माओं और दुराचारियों का निवास था। वे, लोक परंपराओं से उनके घरानों की उत्पत्ति से लेकर प्राचीन महाराजाओं के दरबारों और उनकी नर्तकियों की पायल की झंकार तक का तथ्यान्वेषण करते हैं। वे उस समय का उल्लेख करते हैं जब स्वरलिपि ने चुपके से शास्त्रीय संगीत में प्रवेश किया जिससे वे पुराने उस्ताद भयभीत हो उठे जो कला की एक ऐसी विधा के आदी थे जिसमें स्वतः प्रवृत्ति, तात्कालिक प्रदर्शन को महत्व दिया जाता था। किंतु इसका एक अच्छा परिणाम यह भी निकला कि रागों को सुरक्षित बनाए रखा जा सका जोकि अन्यथा समय के साथ-साथ विलीन हो जाते।
भले ही मुखर्जी के प्रिय ‘ख़ान साहब’, ‘पंडित जी’ और ‘बुआ’ दिव्य शक्ति से प्रेरित रहे हों, किंतु संगीत जगत की नामवर शख्सियतों से प्राप्त जानकारी, या अपनी निजी स्मृति पर आधारित उनके वर्णन से हमें यह जानने को मिलता है कि वे महान कलाकार वस्तुतः मानव ही थे। वे जिन प्रवृत्तियों से प्रेरित थे वे हमेशा उदार नहीं हुआ करती थीं और उनके षड्यंत्र और ईर्ष्या भाव सार्वलौकिक हैं। इस पुस्तक में हास्य-विनोद के भी अनेक प्रसंगों का वर्णन है, और ऐसी शख्सियतों का भी जो पाठकों के मानस पटल पर अंकित रहेंगी।

About the Author(s)

कंपनी डायरेक्टर, संगीतकार, प्रतिष्ठित संगीत उत्सवों के आयोजक, संगीत समालोचक, क्रिकेट प्रेमी, भू—पर्यटक और फ़ोटोग्राफ़र - बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी कुमार प्रसाद मुखर्जी का जीवन अपने आप में काफ़ी रोचक रहा है।
आकाशवाणी पर उनका सबसे पहला गायन कार्यक्रम, राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में प्रसारित किया गया। पैंसठ वर्ष की आयु में उन्हें बंगाली में लिखी गर्इ अपनी पहली पुस्तक पर मनोवांछित रवीन्द्रनाथ टैगोर पुरस्कार प्राप्त हुआ। सत्तर की बढ़ती आयु में उन्होंने अपना रिटायरशुदा जीवन संगीत शिक्षण तथा संगीत एवं क्रिकेट संबंधी विषयों पर लेखन कर्म में व्यतीत किया।

[profiler]
Memory usage: real: 20971520, emalloc: 18463704
Code ProfilerTimeCntEmallocRealMem