Tum ( Hindi)

Tum ( Hindi)

Author : Dr. Sanjay Saxena

In stock
Rs. 995.00
Classification Poetry
Pub Date June 2017
Imprint Sarvatra (An Imprint of Manjul Publishing House)
Page Extent 116
Binding Paperback
Language Hindi
ISBN 9788183226868
In stock
Rs. 995.00
(inclusive all taxes)
OR
About the Book

डॉ संजय सक्सेना की पूर्व प्रकाशित पुस्तकें, 'कुसुम-शती', 'सुमि सागर' और 'मन-मंथन' संज्ञा वाचक काव्य पुस्तकें थीं. उनकी नवीनतम रचना 'तुम' एक सर्वनाम रुपी काव्य है.
इस काव्य को उन्होंने कॉफ़ी टेबल पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया है. शब्दों के साथ के भावों की अभिव्यक्ति चित्रों द्वारा भी दर्शायी गयी है.
कविता को ठेठ साहित्यिकता और ओढ़ी हुई विव्दता से उतार कर बिलकुल साधारण जन की कविता बनाने का उनका यह प्रयास अपने आप में अनूठा व प्रशंसनीय है.

इस संग्रह में बहुत बारीकी से श्रृंगार लिखा गया है. संग्रह की रचनाएँ मुक्त छंद में गीतनुमा एवं ग़ज़लनुमा हैं. प्रेम को पूजा के स्तर पर लाना कवि का करिश्मा हे है.
- चन्द्रसेन विराट (प्रसिद्ध कवि एवं ग़ज़लकार)

इस किताब में मंत्रमुग्ध कर दिया है. यह कोई क़िताब नहीं बल्कि एक प्रेम ग्रन्थ है. मैंने पिछले 30 वर्षों में ऐसा ग्रन्थ नहीं देखा. यह एक अदभुत काव्य-कृति है.
-बी. एल. गौड़ (प्रसिद्ध कवि)

संग्रह में श्रृंगार की कविताएँ होते हुए भी उनमें दर्शन है. यह काव्य-कृति आपने वाली पीढ़ियों को जीवन जीने का सलीका सिखायेगी.
- विश्वास सारंग (मंत्री, म.प्र. शासन, भोपाल)

डॉ. संजय सक्सेना की रचनाओं से गुज़रते हुए लग सकता है कि वे सौंदर्य और श्रृंगार के कवि हैं. लेकिन कविताओं में गहराई से उतरने पर अनुभव होता है कि उनकी रचनाओं के केंद्र में स्थूलता नहीं है, बल्कि सौंदर्य के साथ जुड़े अंतरंग और सूक्ष्म प्रवाहों को पहचानने का सामर्थ्य वे अर्जित कर चुके हैं. उनकी कविताएँ तब एकान्तिक नहीं रह रह जाती, जब वे लिखते हैं-
"किस विधि से तुझे पूजूँ
किस विधि करूँ तेरा ध्यान
किस मंदिर में तुझे सजाऊँ
कि बनी रहे तू बस मेरी भगवान"

एक नितान्त वैयक्तिक अनुभूति को चेतना के विराट पटल तक विस्तार देना कवि की विशिष्टता है.
- कैलाश चंद्र पंत (मंत्री संचालक, राष्ट्र भाषा प्रचार समिति, भोपाल)

About the Author(s)

भोपाल में जन्में डॉ. संजय सक्सेना ने अपनी काव्य यात्रा किशोर अवस्था से ही आरंभ कर दी थी. कभी कहानियाँ तो कभी कविताएँ यत्र-तत्र पत्रिकाओं में छपती रहीं. युवा-वाणी में आकाशवाणी से भी सन 1970 के दशक में उनकी कविताएँ प्रसारित हुईं. आपके पिता डॉ. प्रेमनारायण सक्सेना हमीदिया कॉलेज, भोपाल में कई वर्षों तक कॉमर्स विभाग के विभागाध्यक्ष रहे, उनसे इन्होने निष्ठां ली. माँ श्रीमती कमला सक्सेना राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हिंदी की विद्वान कवयित्री रही हैं, उनसे इन्होंने काव्यधारा और भावुकता ली .
संजय पेशे से चिकित्सक, स्वाभाव से कवि ह्रदय और मन से कला प्रेमी हैं. अपने आस-पास के परिवेश में होने वाली दिन प्रतिदिन की घटनाओं में अपनी भावुकता का रंग भरकर उन्हें कविताओं के माध्यम से प्रस्तुत करना, उनकी विशिष्ट शैली है.

[profiler]
Memory usage: real: 20971520, emalloc: 18472040
Code ProfilerTimeCntEmallocRealMem