About the Book
विवेकानंद आधुनिक युग के भूमा पुरुष
अल्प से तात्पर्य है जागतिक ज्ञान तथा भूमा का अर्थ है आध्यात्मिक ज्ञान। इस दृष्टि से स्वामी विवेकानंद 'भूमानन्द' से परिपूर्ण पुरुष थे तथा अल्प (तृष्णा) में आबद्ध मानवजाति को भूमा सुख की ओर ले जाने वाले पुरुष थे।
स्वामी विवेकानंद जैसे भूमा पुरुष ने देखा कि विचार-पद्धति और जीवन पद्धति में विश्व दो भागों में बँटा हुआ है - एक पूर्वी और दूसरी पश्चिमी। अपनी 'प्राच्य और पाश्चात्य' नामक कृति में विश्लेषण करते हुए उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि यद्यपि दोनों का लक्ष्य एक ही है - जीवन का सौन्दर्यीकरण, परन्तु दोनों की प्राथमिकतायें भिन्न हैं। प्राच्य संस्कृति जीवन को भीतर से सुन्दर बनाने पर बल देती है जबकि पाश्चात्य संस्कृति जीवन को बाहर से ग्रहण करती है। वस्तुतः जीवन में बाहर और भीतर जैसा विभाजन नहीं है तथापि जन सामान्य ने उसे भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में विभाजित कर दिया है। इस कृत्रिम विभाजन को मिटाने हेतु स्वामीजी ने भारत के अद्वैत - दर्शन का प्रयोग किया तथा वैज्ञानिक कसौटी पर उसे खरा सिद्ध कर दिया।
अपनी कार्यपद्धति में उन्होंने 'मनुष्य निर्माण' का कार्य चुना तथा उनकी प्रतिक्रिया थी - समष्टि की पृष्टभूमि में व्यष्टि का निर्माण। प्रसिद्द फ्रेंच लेखक रोमा रोलाँ ने लिखा है, 'स्वामी विवेकानंद की सृजनात्मक प्रतिभा को दो शब्दों में रखा जा सकता है - संतुलन और समन्वय। पुस्तक की सम्पूर्ण सामग्री इन आदर्शों पर ही केंद्रित है।