About the Book
दिव्य प्रेम के भाव के जिन क्षणों में भीतर असीम का अनुभव हुआ, यह रचना उसी की अभिव्यक्ति है. यह शब्द किसी विचार से नहीं बल्कि निर्विचार से उत्पन्न हुए हैं, मानो अंतस में जमी हुई कोई सतह पिघल कर उन्मुक्त झरने की तरह बह निकले.
जिस प्रेरणा ने इस रचना को संभव किया, उसके प्रति कृतज्ञता अभिव्यक्त करना कठिन है. वह मन, बुद्धि, शरीर, फ़ासले के प्रभाव से स्वतंत्र तथा मानव नियंत्रण से बहार है.
जैसी पंक्तियां उसने मुझे सुनाईं - निमित्त की भांति मैंने उन्हें कागज़ पर उतर दिया.
- हरकीरत