About the Book
“युद्ध किसी भी सभ्यता, संस्कृति के लिए सुपरिणाम नहीं लाते। युद्ध का अंत विभीषिका ही होती है। परिस्थितियाँ कुछ भी हों, यथासम्भव दोनों पक्षों को युद्ध से बचना ही चाहिए। एक फलती-फूलती सभ्यता को समाप्तप्राय कर देना और नये सिरे से सभ्यता का पुनर्निर्माण करना सरल नहीं होता। हमेशा से ही यह परम्परा रही है कि युद्ध की विभीषिका से बचने के लिए जो भी प्रयास हो सकते हों, कर लेने चाहिए। तभी तो प्रत्येक युद्ध से पूर्व संधि का प्रस्ताव भेजा जाना आवश्यक होता है। यह राजनीति की तो माँग है ही, लोकनीति भी इसी से प्रशासित होती है। प्रभु श्रीराम तो वैसे भी लोक कल्याण और लोक मर्यादा को महत्व देते रहे हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम इस नीति का पालन न करें, यह संभव न था। युद्ध की सारी संभावनाओं को वे टालना चाहते थे, वे चाहते थे कि युद्ध की भयावहता के बिना ही शिष्टाचार से मामला निक्षेपित हो जाना चाहिए। वे चाहते थे कि रावण उनकी पत्नी सीता को लेकर शरण में आ जाए तो क्षमा कर दिया जाएगा। वे अंतिम क्षणों तक रावण को ह्रदय परिवर्तन का अवसर देकर युद्ध न होने की प्रत्येक सम्भावना का प्रयोग कर लेना चाहते थे। मैंने प्रभु की ओर देखा। मैंने अनुभव किया कि प्रभु यथासंभव हिंसा से बचना चाहते थे।”
About the Author(s)
पवन कुमार, भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं। वे अपने प्रशासकीय दायित्वों के सफलतापूर्वक निर्वहन के साथ ही साथ साहित्य के साथ भी अपना संवाद बनाये रखते हैं। उर्दू शायरी में प्रतिष्ठित मुकाम हासिल करने के उपरांत वे हिंदी उपन्यास लिखने की तरफ मुड़े हैं। इस मोड़ का पहला पत्थर है यह उपन्यास, जिसमें उन्होंने श्री रामभक्त चिरंजीवी हनुमान के विषय में विस्तृत, शोधपरक और वैचारिक लेखन किया है।
विभिन्न जनपदों में जिलाधिकारी जैसे महत्त्वपूर्ण दायित्व निर्वहन करने के अतिरिक्त वे उ.प्र. शासन में विभिन्न विभागों यथा - कृषि, खाद्य रसद, सिंचाई, सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग, आवास विभाग में विशेष सचिव, प्रबंध निदेशक पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम के पद पर कार्य कर चुके हैं। प्रशासनिक कार्यकुशलता व चुनाव प्रबंधन के लिए वे सम्मानित किए जा चुके हैं। सरकारी सेवा में रहते हुए भी बेहतर तरीके से साहित्य के साथ संतुलन बनाये रखे हुए हैं। लेखन के लिए उन्हें कन्हैया लाल प्रभाकर सम्मान, उप्र सरकार के मैथिली शरण गुप्त, ज़ीशान मक़बूल अवार्ड, तुराज सम्मान, उप्र सरकार के सुमित्रा नंदन पंत अवार्ड आदि से सम्मानित किया जा चुका है।
ग़ज़ल पर उनके दो संग्रह ‘वाबस्ता’ (2012) और ‘आहटें’ (2017) प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने ‘दस्तक’ और ‘चराग़ पलकों पर’ का संकलन और संपादन भी किया है। उनकी ग़ज़लियात के बारे में मशहूर शायर शीन काफ़ निज़ाम और शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी ने लिखा है कि पवन कुमार अपने कलाम के वसीले से फ़र्द से फ़र्दन बात करना चाहते हैं। उनके दो गीत ‘पानी तेरा रंग’ और ‘सुन ले ओ साथिया’ बहुत लोकप्रिय रहे हैं। कई म्यूजिक एलबम में उनके गीत ग़ज़ल रिलीज हो चुके हैं। उनकी ग़ज़लों को हरिहरन, साधना सरगम, रूपकुमार राठोड़, मो. वकील आदि आवाज़ दे चुके हैं।
सम्प्रति प्रशासनिक उत्तरदायित्वों के साथ-साथ रचनाकर्म में व्यस्त हैं।
संपर्क : singhsdm@gmail.com